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वा॒वृ॒धा॒ना शु॑भस्पती दस्रा॒ हिर॑ण्यवर्तनी । पिब॑तं सो॒म्यं मधु॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vāvṛdhānā śubhas patī dasrā hiraṇyavartanī | pibataṁ somyam madhu ||

पद पाठ

वा॒वृ॒धा॒ना । शु॒भः॒ । प॒ती॒ इति॑ । दस्रा॑ । हिर॑ण्यऽवर्तनी॒ इति॒ हिर॑ण्यऽवर्तनी । पिब॑तम् । सो॒म्यम् । मधु॑ ॥ ८.५.११

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:5» मन्त्र:11 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:3» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:1» मन्त्र:11


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शिव शंकर शर्मा

राजा और अमात्य कैसे होवें, यह इससे उपदेश देते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् तथा अमात्य ! आप दोनों प्रथम सर्व कार्य में (वावृधाना) प्रवर्ध्यमान=बढ़नेवाले तथा उन्नति करनेवाले होवें तथा (शुभस्पती) सर्व कल्याणों के रक्षक होवें (दस्रा) ऐसे शुभ कर्म करें कि आप प्रजाओं के दर्शनीय और शत्रुविनाशक होवें (हिरण्यवर्तनी) और आपके आचरण सर्वोत्तम होवें या रथ सुवर्णमय होवें या आपके अच्छे मार्ग होवें। ऐसे होकर (सोम्यम्) सोमादियुक्त (मधु) मधु उत्तम-२ पदार्थ को भोगें (पिबतम्) पीवें ॥११॥
भावार्थभाषाः - राजा और कर्मचारी वर्ग कभी आलसी न होवें, वे शुभस्पति बनें अर्थात् प्रजाओं के कल्याण करने में ही सदा लगे रहें। दस्रा=ऐसे कर्म करें कि प्रजा उनके दर्शन के लिये सदा उत्कण्ठित रहे, इत्यादि-२ उत्तमोत्तम कार्य्य करते हुए श्रेष्ठ आरोग्यजनक पदार्थों को भोंगे ॥११॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (शुभस्पती) हे उत्कृष्टपदार्थों के स्वामी (दस्रा) शत्रुओं का उपक्षय करनेवाले (हिरण्यवर्तनी) सुवर्णमय व्यवहारवाले ! आप (वावृधाना) अभ्युदयसम्पन्न हैं (सोम्यम्, मधु) इस शोभन मधुररस को (पिबतम्) पीजिये ॥११॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में ज्ञानयोगी तथा कर्मयोगी का स्तुतिपूर्वक सत्कार करना कथन किया है कि हे उत्तमोत्तम पदार्थों के स्वामी ! आप शत्रुओं का क्षय करनेवाले तथा अभ्युदयसम्पन्न हैं। कृपया इस उत्तम मधुर रस को, जो नाना पदार्थों से सिद्ध किया गया है, पान करके हमारे इस सत्कार को स्वीकार करें ॥११॥
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शिव शंकर शर्मा

राजानौ कीदृशौ भवेतामित्याचष्टे।

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजानौ ! युवां सर्वस्मिन् कार्ये। वावृधाना=वावृधानौ=प्रवर्धमानौ समुन्नतेः कर्त्तारौ भवतम्। पुनः। हे शुभस्पती=सर्वेषां शुभानां कल्याणानां पती पालकौ भवतम्। हे दस्रा=दर्शनीयौ वा=प्रजाभिः। शत्रूणामुपक्षयितारौ वा भवतम्। पुनः। हे हिरण्यवर्तनीः=वर्तनिर्वर्त्तनमाचरणं हिरण्यो हिरण्मयोर्वर्तनिराचरणं ययोस्तौ सर्वोत्तमाचरणावित्यर्थः। यद्वा। वर्तनिर्मार्गः=उत्तममार्गौ। यद्वा। वर्तनी रथः=सुवर्णमयरथौ। ईदृशौ भवतम्। ईदृशौ भूत्वा सोम्यम्=सोमयुक्तं मधु। पिबतम् ॥११॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (शुभस्पती) हे दिव्यपदार्थस्वामिनौ (दस्रा) शत्रूणामुपक्षयकर्तारौ (हिरण्यवर्तनी) हिरण्यव्यवहारौ ! युवाम् (वावृधाना) अभ्युदयवन्तौ स्तः (सोम्यम्, मधु) शोभनं रसम् (पिबतम्) उपभुञ्जाथाम् ॥११॥